एमनेस्टी ने प्रशांत द्वीपवासियों के लिए लगाई ‘क्लाइमेट वीजा’ की गुहार

एमनेस्टी ने प्रशांत द्वीपवासियों के लिए लगाई ‘क्लाइमेट वीजा’ की गुहार

एमनेस्टी ने प्रशांत द्वीपवासियों के लिए लगाई ‘क्लाइमेट वीजा’ की गुहार

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IANS
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amnesty on pacific islands

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दुनिया का ध्यान उन छोटे द्वीप देशों की ओर दिलाया है जो डूब रहे हैं। इन डूबते द्वीपों पर रहने वाले लोगों को तिनके का सहारा चाहिए और वो तिनका क्लाइमेट वीजा है।

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कल्पना कीजिए उस द्वीप के बारे में जहां आपके आंगन में रोज समंदर का पानी घुस आता है, पीने का पानी नमकीन हो जाता है, और सरकार कहे कि अब बस कुछ ही साल बचे हैं आपके द्वीप के डूबने में। यकीन मानें, ये किसी फिल्म की कहानी नहीं बल्कि प्रशांत महासागर के छोटे द्वीप देशों तुवालु, किरिबाती की सच्चाई है।

इनके हाल देखकर ही एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2025 में एक सशक्त बयान जारी किया और कहा, “जलवायु संकट अब केवल पर्यावरणीय नहीं रहा, यह मानवाधिकार संकट बन चुका है।”

एमनेस्टी ने 8 अक्टूबर को जारी अपनी रिपोर्ट में बताया कि प्रशांत क्षेत्र के लाखों लोग अब वास्तविक विस्थापन के कगार पर हैं।

समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जिससे तटीय इलाके डूब रहे हैं। मिट्टी खारी हो गई है, पेयजल दूषित है, और खेती नामुमकिन होती जा रही है। रिपोर्ट कहती है कि “यह सिर्फ घर खोने का मसला नहीं, यह पहचान खोने का संकट है।”

इस अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ने न्यूजीलैंड सरकार से विशेष आग्रह किया है कि वे ‘मानवीय आधार पर क्लाइमेट वीजा’ जारी करें, ताकि ऐसे लोग जो समुद्र में डूबते द्वीपों से विस्थापित हो रहे हैं, उन्हें सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन मिल सके।

न्यूजीलैंड में पहले से पैसिफिक एक्सेस कैटेगरी नामक वीजा योजना है लेकिन इसकी भी सीमा है। इसमें 18–45 वर्ष के लोग शामिल हैं। एमनेस्टी का कहना है कि यह नीति “भेदभावपूर्ण” है क्योंकि इससे बुजुर्ग, विकलांग और बीमार लोग बाहर रह जाते हैं।

एमनेस्टी का तर्क है कि इन देशों के नागरिकों को वापस “खतरनाक परिस्थितियों” में भेजना अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन होगा। कानूनी शब्दों में इसे कहते हैं नॉन रिफाउलमेंट यानी किसी को ऐसे देश में वापस नहीं भेजा जा सकता जहां उसकी जान या गरिमा को खतरा हो।

अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) के अनुसार, साल 2008 से 2017 के बीच प्रशांत महासागर क्षेत्र में लगभग 3 लाख 20 हजार लोग प्राकृतिक आपदाओं के कारण अपने घर छोड़ने पर मजबूर हुए। वहीं, नासा के नवीनतम आकलन में चेतावनी दी गई है कि आने वाले 30 वर्षों में समुद्र का स्तर 15 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है, जो इन छोटे द्वीप देशों के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है।

--आईएएनएस

केआर/

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

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