बर्थडे स्पेशल : 93 साल के हो गए मैट्रो मैन श्रीधरन, देश को एक-दो नहीं दिए कई अनुपम उपहार

बर्थडे स्पेशल : 93 साल के हो गए मैट्रो मैन श्रीधरन, देश को एक-दो नहीं दिए कई अनुपम उपहार

बर्थडे स्पेशल : 93 साल के हो गए मैट्रो मैन श्रीधरन, देश को एक-दो नहीं दिए कई अनुपम उपहार

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IANS
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बर्थडे स्पेशल : 93 साल के हो गए मैट्रो मैन श्रीधरन, देश को एक-दो नहीं दिए कई अनुपम उपहार

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 11 जून (आईएएनएस)। ये जो आप फर्र से दिल्ली के इस कोने से उस कोने पहुंच जाते हैं न इसका बड़ा कारण वो मेट्रो है जो इलातुवलापिल यानी ई श्रीधरन की देन है। श्रीधरन जिनका 12 जून को जन्मदिन है। ईमानदारी, धुन के पक्के और छोटे लक्ष्य रख बड़ा कारनामा कर गुजरने का नाम है केरल के पलक्कड़ में जन्मे ई श्रीधरन का! ऐसे सिविल इंजीनियर जिन्होंने अपने दिमाग और अटूट विश्वास के बल बूते वो कर दिखाया जो अनुपम, अद्भुत और अद्वितीय है। एमएस अशोकन की किताब कर्मयोगी में मैट्रो मैन की खूबियां बताई गई हैं। इसी में लिखा है कि काम के प्रति समर्पित श्रीधरन ने कभी 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं किया।

उनके समर्पण और सराहनीय कार्य को दुनिया ने भी सलाम किया। पद्म श्री और पद्म विभूषण से देश ने सम्मानित किया तो 2005 में फ्रांस सरकार ने शेवेलियर डे ला लीजन ऑफ ऑनर से नवाजा। उनकी काबिलियत का लोहा टाइम पत्रिका ने भी माना। 2003 में पत्रिका ने उन्हें एशिया के नायकों में नॉमिनेट किया। ई श्रीधरन की जिंदगी बेमिसाल है। समय की कद्र करने वाला शख्स कैसे हर दिल में जगह बनाता है, इसकी जीती जागती मूरत हैं। खूबियां इनमें भरी पड़ी हैं। इनमें से तीन ऐसी हैं जिन्हें अपना लिया तो जीवन सफल हो सकता है।

मुश्किल टास्क को समय के भीतर पूरा करना उनकी पहली खूबी है। साल 1964, भारत का सबसे बड़ा समुद्री पुल पंबन रामेश्वरम के छोटे से शहर को भारत की मुख्य भूमि से जोड़ने वाली जीवन रेखा भी था। प्राकृतिक आपदा का शिकार हो गया। टूटे पंबन ब्रिज को दोबारा बनाने के लिए सरकार ने श्रीधरन को 3 महीने का समय दिया। चमत्कार हुआ और ये ब्रिज महज 46 दिनों में तैयार कर दिया गया। लेखक अशोकन लिखते हैं यह और भी शानदार लगता है क्योंकि भारत को बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के समय पर पूरा करने के मामले में एक ब्लैक होल के रूप में जाना जाता है।

समय की पाबंदी के साथ श्रीधरन से एक और सबक सीखने को मिलता है और वो है अर्जुन की तरह अपने लक्ष्य पर ध्यान।

उनके लक्ष्य केंद्रित अप्रोच का सीधा प्रमाण कोंकण रेलवे मार्ग है। खास बात ये कि इसके लिए उन्होंने रिवर्स क्लॉक इंस्टॉल कराई जिससे लोगों को समय के जल्दी बीतने का एहसास हो। 1990 से पहले, दक्षिणी राज्य मैंगलोर से मुंबई (तब बॉम्बे) तक कोई सीधी रेल लाइन नहीं थी। दोनों शहर महत्वपूर्ण बंदरगाह थे, यह समय की मांग थी और फिर भी यात्रा का समय बहुत अधिक था। मंत्री स्तर पर एक रेलवे लाइन बनाने का निर्णय लिया गया जो दोनों को जोड़ सके। काफी विचार-विमर्श के बाद, श्रीधरन को इस परियोजना का नेतृत्व करने के लिए बुलाया गया। यह जटिल परियोजना थी क्योंकि इसमें चार राज्य केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा शामिल थे। सभी के अलग-अलग राजनीतिक इरादे और लक्ष्य थे। इसके अलावा, यह भारत के सबसे खतरनाक इलाकों से गुजरना था। जंगलों, दलदलों, नदियों और पहाड़ों से गुजरना इसी तरह की कल्पना की गई थी।

लेकिन फिर श्रीधरन तो किसी और ही मिट्टी के थे। 7 वर्षों में, इस परियोजना को दुर्गम बाधाओं के बीच पूरा किया गया। कुल 736 किलोमीटर, 128 रेलवे स्टेशनों और 150 पुलों में फैली यह एक विशाल परियोजना थी, जो भारत में पहले कभी नहीं देखी गई थी। श्रीधरन का ये एटीट्यूड दृढ़ विश्वास और निर्णय लेने के साहस को दर्शाता है। हमेशा अपना फोकस बनाए रखा।

मैट्रो मैन की तीसरी खासियत छोटा टू-डू लिस्ट रखना है। सोचते बड़े हैं लेकिन टू-डू लिस्ट छोटी रखते हैं। दफ्तर को 8 घंटे से ज्यादा का समय नहीं दिया लेकिन जितना दिया उसमें कर्मयोगी की तरह भिड़े रहे। मिसाल दिल्ली मेट्रो है। दिलचस्प बात यह है कि इस परियोजना के लिए श्रीधरन को वापस बुलाया गया। मतलब सेवानिवृत्ति से वापस लाया गया था। उन्होंने बड़ी छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान दिया। मसलन, ऐसे उपाय जिससे काम प्रभावित न हो और आम लोगों को कम नुकसान पहुंचे। श्रीधरन के नेतृत्व में, इस परियोजना को भी विनिर्देशों के अनुसार बनाया और पूरा किया गया। इसी परियोजना में नहीं बल्कि दूसरे प्रोजेक्ट्स में भी श्रीधरन अपने रोजाना के टू-डू लिस्ट गोल को छोटा रखते थे और उसे पूरा करने के लिए सक्रिय रहते थे।

तो ये हैं लोगों को मेट्रो ट्रेन की आदत लगाने वाले श्रीधरन। जिन्होंने बड़ी सहजता से उस नैरेटिव को बड़ी खूबी से ब्रेक किया कि आईआईटी जैसे बड़े नामचीन संस्थानों में पढ़ा-लिखा शख्स ही कामयाबी की बुलंदियों को छू सकता है। श्रीधरन इस ढांचे में फिट नहीं बैठते क्योंकि उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग गैर-आईआईटी कॉलेज से की है, फिर भी उपलब्धियां ऐसी कि कोई भी रश्क कर जाए!

--आईएएनएस

केआर/

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