Advertisment

डॉलर के मुकाबले रुपया फिसलकर 84 के पार, क्यों गिर रही है भारतीय मुद्रा?

डॉलर के मुकाबले रुपया फिसलकर 84 के पार, क्यों गिर रही है भारतीय मुद्रा?

author-image
IANS
New Update

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

Advertisment

नई दिल्ली, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। अंतरबैंकिंग मुद्रा बाजार में रुपये की कीमत 11 सितंबर को अपने दूसरे सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गई। सप्ताहांत पर कारोबार बंद होते समय एक डॉलर की कीमत 84 रुपये को पार कर गई। इस गिरावट की वजह शेयर बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की बताई जा रही है।

मुद्रा बाजार में एक डॉलर की कीमत 84.07 रुपये रही। भारतीय मुद्रा का ऐतिहासिक निचला स्तर 84.10 रुपये प्रति डॉलर रहा है। इससे पहले गुरुवार को भी यह 83.98 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुई थी।

निकोरे एसोसिएट्स की प्रमुख और आर्थिक मामलों की जानकार मिताली निकोरे ने आईएएनएस को बताया, “भारतीय रुपये के अंतरबैंकिंग मुद्रा बाजार में मूल्यांकन के हालात को समझने के लिए कुछ वर्ष पीछे देखना होगा। भारतीय रुपये ने पहली बार सितंबर 2022 में 80 रुपये प्रति डॉलर का स्तर छुआ था। इन दो वर्षों में इसमें धीरे-धीरे गिरावट आई है। अक्टूबर 2022 में रुपये का मूल्य 82 से 83 रुपये के बीच रहा। इसके बाद, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वैश्विक मुद्रा बाजार में असाधारण कार्रवाई की, जिसमें डॉलर और अन्य विदेशी मुद्राएं बेचीं, ताकि रुपये को 83-84 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर बनाए रखा जा सके। हाल ही में भारतीय मुद्रा ने 84 रुपये प्रति डॉलर के स्तर को पार किया है और अब इसका मूल्य 84.06 रुपये प्रति डॉलर है। इसके पीछे के कारणों को समझना आवश्यक है। वर्तमान में रुपये की गिरावट के दो मुख्य कारण हैं। पहला, पश्चिम एशिया में चल रहा तनाव है। भारत के विदेशी मुद्रा और डॉलर के जमा का एक बड़ा हिस्सा कच्चे तेल के आयात के लिए उपयोग होता है। पश्चिम एशिया में तनाव के कारण भारत के लिए कच्चे तेल का आयात करना कठिन हो रहा है, विशेष रूप से ईरान से। इस स्थिति के कारण वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे भारत पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा।”

वह आगे कहती हैं, “दूसरा कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की गतिविधियों से संबंधित है। जब विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार में पैसा लगाते हैं, तो उन्हें अपनी मुद्रा को रुपये में बदलना होता है। यदि भारतीय शेयरों की मांग में कमी आती है या निवेशक भारतीय बाजार से पूंजी निकालते हैं, तो रुपये की मांग भी घट जाती है। पिछली दो तिमाहियों में भारतीय शेयर बाजार से लगभग 60 करोड़ रुपये की विदेशी पूंजी शुद्ध रूप से निकाली गई है जिससे डॉलर की मांग बढ़ी है और रुपया दबाव में आया है।”

वह अंत में कहती हैं, “हालांकि आरबीआई की कार्रवाई जारी है, वह बाजार में डॉलर बेचकर रुपये के मूल्य को स्थिर रखने की कोशिश कर रहा है। लेकिन मैं यह मानती हूं कि रुपये का अवमूल्यन पूरी तरह से नकारात्मक नहीं है। अवमूल्यन निर्यातकों के लिए लाभदायक हो सकता है, क्योंकि इससे हमारे उत्पाद और सेवाएं अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में सस्ती हो जाती हैं। इस प्रकार, आरबीआई कुछ अवमूल्यन को जारी रखने का निर्णय भी ले सकता है, क्योंकि यह निर्यात-आधारित विकास को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।”

--आईएएनएस

पीएसएम/एकेजे

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Advertisment
Advertisment
Advertisment