नई दिल्ली, 9 जुलाई (आईएएनएस)। इतिहास की किताबों में 1857 की क्रांति को भले ही भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता हो, लेकिन इससे ठीक 51 वर्ष पहले ही देश की मिट्टी पर आजादी की चिंगारी सुलग चुकी थी। वह ऐतिहासिक पल था 10 जुलाई 1806 का, जब तमिलनाडु के वेल्लोर किले में भारतीय सिपाहियों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंका था। यह विद्रोह अपने आप में इतना व्यापक और प्रभावशाली था कि उसने फिरंगियों के पैरों तले जमीन खिसका दी थी।
सोलहवीं सदी में विजयनगर साम्राज्य द्वारा निर्मित वेल्लोर किला, 19वीं सदी में अंग्रेजी शासन के अधीन मद्रास प्रेसीडेंसी की प्रमुख सैन्य छावनी बन चुका था। यहीं पर 10 जुलाई 1806 को सैकड़ों भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजों के अन्याय के खिलाफ बगावत कर दी। यह देश के इतिहास में पहली बार था, जब ब्रिटिश सेना के भीतर से ही खुला विद्रोह हुआ।
विद्रोह की जड़ें उस आदेश में छिपी थीं, जो अंग्रेजों ने 1805 में जारी किया था। इसमें सिपाहियों को नई ड्रेस पहनने का फरमान सुनाया गया, जिसमें न तो धार्मिक प्रतीकों की अनुमति थी, न ही दाढ़ी-मूंछ रखने की छूट। हिन्दू और मुस्लिम सिपाहियों को अपनी पगड़ियां उतारनी पड़ीं, जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुईं। इसके साथ ही एक विशेष टोपी पहनने का आदेश दिया गया, जिसके बारे में अफवाह थी कि वह गाय और सुअर की खाल से बनी है, जो हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लिए अत्यंत अपमानजनक था।
जब सैनिकों ने इन बदलावों का विरोध किया, तो उन्हें बुरी तरह दंडित किया गया। कुछ को कोड़े मारे गए, तो कुछ को दूरस्थ किलों में भेज दिया गया। यह दमन अंततः वेल्लोर विद्रोह का कारण बना।
जब 9 जुलाई की रात सैनिकों को परेड के लिए किले में ही रुकने को कहा गया, तब योजना बन चुकी थी। आधी रात के बाद सिपाही उठे और अंग्रेजों पर धावा बोल दिया। किले के कमांडर समेत कई उच्चाधिकारियों की हत्या कर दी गई। हथियारों के जखीरे पर कब्जा करने के बाद उन्होंने अंग्रेजी झंडा उतार कर टीपू सुल्तान का शाही ध्वज फहरा दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने टीपू सुल्तान के पुत्र को राजा घोषित कर दिया।
मेजर कूप्स नामक एक अंग्रेज अधिकारी इस विद्रोह से बच निकला और तुरंत आर्कोट जाकर सहायता मांगी। महज नौ घंटे में अंग्रेजी सेना वेल्लोर पहुंच गई और किले को घेर लिया। प्रतिशोध में करीब 100 से अधिक भारतीय सैनिकों को दीवार के सामने खड़ा कर गोली मार दी गई। यह नरसंहार इतना भयावह था कि इंग्लैंड तक इसकी गूंज पहुंची और वहां की सत्ता तक हिल गई।
विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने विवादास्पद ड्रेस कोड और नए नियमों को रद्द कर दिया। वेल्लोर की समस्त भारतीय सैन्य टुकड़ियों को भंग कर दिया गया और पूरे इलाके में सैन्य पुनर्गठन किया गया।
वेल्लोर विद्रोह भले ही लंबे समय तक इतिहास के पन्नों में दबा रहा, लेकिन यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली सैन्य बगावत थी। लगभग 800 भारतीय सिपाहियों ने इसमें भाग लिया और अंग्रेजों के प्रभुत्व को खुली चुनौती दी। यह विद्रोह साबित करता है कि 1857 से पहले भी भारत में अंग्रेजी शासन के खिलाफ गुस्सा उबल रहा था और उसकी आंच वेल्लोर की प्राचीर से उठ चुकी थी। वेल्लोर किला आज भी इस संघर्ष की गवाही देता है, जहां पहली बार ब्रिटिश झंडा उतारकर आजादी का झंडा लहराया गया था।
--आईएएनएस
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