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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 8 दिसंबर (आईएएनएस)। अयाकूचो का युद्ध दक्षिण अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का वह मोड़ था, जहां उपनिवेशवादी स्पेनिश शासन की आख़िरी पकड़ भी ढहने लगी। 9 दिसंबर 1824 को पेरू के अंडियन मैदानों में लड़ी गई यह लड़ाई केवल दो सेनाओं की भिड़ंत नहीं थी, बल्कि लंबे संघर्ष, असंतोष और स्वतंत्रता की आकांक्षाओं का वह संगम थी जिसने पूरे महाद्वीप के राजनीतिक नक्शे को बदल दिया।
दक्षिण अमेरिकी स्वतंत्रता सेनानियों के लिए यह युद्ध वैसे ही निर्णायक था, जैसे किसी राष्ट्र के भाग्य का अंतिम दरवाज़ा खोल देने वाला क्षण। जनरल एंतोनियो होसे दे सूक्रे के नेतृत्व में क्रांतिकारी सेना ने स्पेनिश जनरल जोस दे कांतर्लाक के नेतृत्व वाली रॉयलिस्ट सेना को परास्त किया। यह जीत अचानक नहीं हुई थी; यह उन वर्षों की कोशिशों, रणनीतियों और लोगों के संघर्ष का परिणाम थी जो स्पेनिश शासन की बेड़ियों को तोड़ना चाहते थे।
इस युद्ध के मैदान पर मौजूद हर सैनिक केवल अपने देश के लिए नहीं लड़ रहा था बल्कि पूरे दक्षिण अमेरिका की मुक्ति की आशा लेकर खड़ा था। पेरू, बोलीविया, कोलंबिया और वेनेज़ुएला जैसे देशों के स्वतंत्रता अभियान आपस में जुड़े हुए थे, और अयाकूचो की विजय ने इन अभियानों को निर्णायक ऊर्जा प्रदान की।
स्पेनिश साम्राज्य पहले ही कई मोर्चों पर कमजोर पड़ चुका था, लेकिन अयाकूचो की हार ने उसकी अंतिम प्रशासनिक और सैन्य शक्ति को भी खत्म कर दिया। इसी लड़ाई के बाद स्पेन को समझ में आ गया कि महाद्वीप पर उसकी सत्ता अब लौटने वाली नहीं है।
इस युद्ध की खास बात यह थी कि यह सिर्फ हथियारों से जीता गया संघर्ष नहीं था; इसमें स्थानीय समुदायों का जुनून, क्रांतिकारियों की निष्ठा और स्वतंत्रता नेताओं का सुविचारित नेतृत्व शामिल था। युद्ध के तुरंत बाद स्पेनिश सेनाओं ने आत्मसमर्पण किया और पेरू की स्वतंत्रता को औपचारिक रूप मिला। आगे चलकर बोलीविया जैसे देशों की स्वतंत्रता में भी अयाकूचो की गूंज सुनाई दी, क्योंकि इस विजय ने पूरे क्षेत्र के लिए यह स्पष्ट संदेश दिया कि औपनिवेशिक शासन अब अतीत बनने वाला है।
दक्षिण अमेरिका में राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता का नया दौर यहीं से शुरू हुआ। अयाकूचो आज भी पेरू और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों में साहस, एकता और स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। यह युद्ध इतिहास का वह क्षण था जब एक साम्राज्य का अंत हुआ और कई नए राष्ट्रों का भविष्य आकार लेने लगा।
--आईएएनएस
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