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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 7 सितंबर (आईएएनएस)। 29 सितंबर 2008 की रात मालेगांव के भिक्कू चौक पर हुआ धमाका कुछ सेकंड का था, लेकिन उसका शोर सियासत, समाज और न्याय व्यवस्था में 17 साल तक गूंजता रहा। सवाल आज भी हवा में गूंज रहा है कि आखिर धमाकों का गुनहगार कौन है? क्योंकि राजनीतिक प्रयोगशाला में जिस तरह भगवा आतंकवाद की कहानी गढ़ी गई थी, वो अदालत में दम तोड़ चुकी है।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि मालेगांव का यह धमाका सिर्फ एक हादसा नहीं था, बल्कि एक ऐसा मोड़ था जिसने भारत की राजनीति और आतंकवाद की परिभाषा को हिला कर रख दिया। जिस तरह बम विस्फोट को एक नैरेटिव के तौर पर गढ़ा गया और नाम दिया गया, भगवा आतंकवाद, उसमें न्याय की लड़ाई से कहीं ज्यादा राजनीतिक दुश्मनी नजर आई, जो अदालत के फैसले के बाद और स्पष्ट दिखी।
उस समय रात के करीब साढ़े 9 बजे बाजारों में रौनक थी। तभी मस्जिद के सामने विस्फोट हुआ। धमाका इतना तेज था कि आसपास की दुकानें और मकान तक हिल गए। धमाके से सियासत भी थर्रा गई थी। जांच एटीएस को सौंपी गई और फिर कहानी में अभिनव भारत नाम की एक संस्था की एंट्री हुई। हिंदुस्तान के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि मालेगांव विस्फोट को राजनीतिक रंग से रंगने की कोशिश की गई।
एक के बाद एक हाई प्रोफाइल गिरफ्तारियां हुईं। आरोप हिंदूवादी नेताओं पर थे, जिनमें प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित जैसे बड़े नाम शामिल थे। इनके अलावा रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, समीर कुलकर्णी, सुधाकर चतुर्वेदी और सुधाकर धार द्विवेदी का नाम जुड़ा। एटीएस की शुरुआती जांच में दावा किया गया कि विस्फोट में इस्तेमाल मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर की थी और पुरोहित ने जम्मू-कश्मीर से आरडीएक्स लाकर अपने घर में रखा था। इसलिए मकोका और यूएपीए जैसे कानून इन पर थोप दिए गए।
सिर्फ यही नहीं, संघ प्रमुख मोहन भागवत से लेकर योगी आदित्यनाथ तक, कई लोगों की गिरफ्तारियों की पूरी कोशिश थी। मालेगांव ब्लास्ट मामले के गवाह रहे मिलिंद जोशीराव ने एक बयान में कहा था, एटीएस के अधिकारी उन पर दबाव बना रहे थे कि योगी आदित्यनाथ का भी नाम लें, ताकि उन्हें गिरफ्तार किया जा सके। एटीएस उन पर मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक सेवक संघ के कुछ नेताओं के नाम लेने की बात कह रहा था, जिसमें योगी आदित्यनाथ का भी नाम शामिल था।
महाराष्ट्र एटीएस के एक पूर्व अधिकारी, जो 2008 के मालेगांव बम धमाके की जांच करने वाली टीम का हिस्सा थे, ने भी एक खुलासा किया था और कहा था, कुछ नेताओं को झूठे मामलों में फंसाने के आदेश थे। यही वह समय था जब भगवा आतंकवाद शब्द ने जोर पकड़ना शुरू किया।
आरोपियों में शामिल रहीं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने भी यह दावा किया था कि उन्हें जांच एजेंसियों की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम लेने के लिए मजबूर किया गया था।
साध्वी प्रज्ञा ने एक बयान में कहा था, हां, मुझे मजबूर किया गया था। मैं दबाव में नहीं आई और मैंने किसी का नाम नहीं लिया, किसी को झूठा नहीं फंसाया। इसलिए, मुझे बहुत प्रताड़ित किया गया। 17 साल तक अपमान और यातना का सामना करना पड़ा।
हालांकि, जब मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई तो 323 गवाहों में से 40 गवाह अपने ही बयानों से मुकर गए थे। कई ने एटीएस के ऊपर ही संगीन आरोप लगाए थे। आखिर में 31 जुलाई 2025 को मुंबई की एनआईए कोर्ट ने अपना अंतिम फैसला सुनाया और सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया। इस फैसले ने 17 साल की जांच और उसके बाद की सुनवाई को एक झटके में शून्य पर लाकर खड़ा कर दिया।
फिर भी, सवाल बरकरार है कि 17 साल बाद भी मालेगांव धमाके के असली दोषी का पता नहीं चल पाया।
--आईएएनएस
डीसीएच/एएस
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