नई दिल्ली, 14 जून (आईएएनएस)। ठीक 78 साल पहले 15 जून 1947 को भारत के इतिहास में एक ऐसा दिन दर्ज हुआ, जिसने न केवल देश की भौगोलिक सीमाओं को बदला, बल्कि लाखों लोगों की जिंदगियों को हमेशा के लिए प्रभावित किया।
यह वह दिन था, जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने ऐतिहासिक अधिवेशन में ब्रिटिश शासन की माउंटबेटन योजना के तहत भारत के बंटवारे को मंजूरी दी। यह फैसला न केवल एक राजनीतिक निर्णय था, बल्कि यह उस दर्द का प्रतीक बन गया, जिसने भारत और पाकिस्तान के रूप में दो नए राष्ट्रों को जन्म दिया।
1947 का वह दौर आजादी की आस का समय था। ब्रिटिश शासन अपने अंतिम पड़ाव पर था और भारत की आजादी का सपना साकार होने वाला था। लेकिन इस आजादी की कीमत थी देश का विभाजन।
ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन की ओर से प्रस्तावित माउंटबेटन योजना में भारत को दो हिस्सों, भारत और पाकिस्तान, में बांटने की बात कही गई थी। इस योजना को स्वीकार करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं था। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं के सामने एक कठिन विकल्प था या तो बंटवारे को स्वीकार करें, या देश को और लंबे समय तक सांप्रदायिक हिंसा और अस्थिरता में झोंक दें।
कांग्रेस के उस अधिवेशन में माहौल गंभीर था। नेताओं के बीच गहन विचार-विमर्श हुआ। गांधी जी, जो बंटवारे के सख्त खिलाफ थे, उन्होंने इसे देश का विच्छेद कहा।
लेकिन सांप्रदायिक तनाव, खासकर पंजाब और बंगाल में बढ़ती हिंसा ने कांग्रेस को यह कठोर निर्णय लेने के लिए मजबूर किया। मुस्लिम लीग, जिसका नेतृत्व मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे, अलग राष्ट्र की मांग पर अडिग थी। ऐसे में कांग्रेस ने यह मान लिया कि बंटवारा ही एकमात्र रास्ता है, जो देश को और रक्तपात से बचा सकता है।
इस फैसले के बाद भारत की आजादी की तारीख 15 अगस्त 1947 तय की गई। लेकिन बंटवारे की यह मंजूरी केवल कागजों पर एक निर्णय नहीं थी। इसके परिणामस्वरूप लाखों लोग बेघर हुए, हजारों ने अपनी जान गंवाई और सांप्रदायिक दंगों ने देश के कई हिस्सों को झकझोर दिया। पंजाब और बंगाल जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर पलायन हुआ, जिसने इतिहास की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदियों में से एक को जन्म दिया।
आज जब हम इस ऐतिहासिक घटना को याद करते हैं तो यह हमें उन बलिदानों की याद दिलाता है, जिन्होंने आज के भारत को आकार दिया। यह वह दौर था, जब देश ने एक साथ आजादी का जश्न मनाया और बंटवारे का दर्द सहा। इतिहास के इस मोड़ ने हमें एकजुटता, सहिष्णुता और शांति के महत्व को सिखाया। यह हमें याद दिलाता है कि आजादी की कीमत कितनी भारी थी और इसे संजोकर रखना हमारी जिम्मेदारी है।
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