/newsnation/media/media_files/thumbnails/202512313624599-315960.jpg)
(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 31 दिसंबर (आईएएनएस)। 1863 के साल का पहला दिन था। 1 जनवरी की दोपहर वॉशिंगटन डी.सी. में व्हाइट हाउस का एक कमरा असामान्य रूप से शांत था। सुबह से राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन नए साल की शुभकामनाएं देने आए सैकड़ों लोगों से हाथ मिला चुके थे। उनका दायां हाथ थक चुका था और हल्का-सा कांप भी रहा था। सामने मेज पर रखा था एक ऐसा दस्तावेज, जो अमेरिकी इतिहास की दिशा बदलने वाला था। और ये था एमैंसिपेशन प्रोक्लेमेशन।
लिंकन कुछ पल रुके। उन्होंने कहा कि यदि इस दस्तावेज पर उनके हस्ताक्षर कांपते हुए, तो आने वाली पीढ़ियां यह समझ सकती हैं कि राष्ट्रपति स्वयं अपने निर्णय को लेकर सशंकित थे। इसलिए उन्होंने इंतजार किया, हाथ स्थिर हुआ, और फिर उन्होंने हस्ताक्षर किए। इतिहासकार जेम्स एम. मैकफर्सन अपनी प्रसिद्ध पुस्तक बैटल क्राई ऑफ फ्रीडम में इस क्षण को प्रतीकात्मक बताते हैं। वह क्षण अमेरिका के नैतिक साहस का प्रतीक था।
यही वह दिन था जब अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने आधिकारिक रूप से एमैंसिपेशन प्रोक्लेमेशन लागू किया। यह घोषणा ऐसे समय आई जब अमेरिका गृहयुद्ध के बीच फंसा हुआ था। 1861 से शुरू हुआ यह युद्ध केवल क्षेत्रीय सत्ता या राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई नहीं था; इसकी जड़ में दास प्रथा जैसी अमानवीय व्यवस्था थी, जिसने अमेरिकी समाज को दो हिस्सों में बांट दिया था।
जेम्स एम. मैकफर्सन लिखते हैं कि लिंकन शुरू में दास प्रथा को समाप्त करने के प्रश्न पर बेहद सावधान थे। उनका प्राथमिक उद्देश्य संघ को बचाना था। लेकिन जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा, यह स्पष्ट होता गया कि बिना गुलामी की व्यवस्था को चुनौती दिए संघ को बचाना संभव नहीं है। अब यह केवल संघ बनाम विद्रोह नहीं, बल्कि स्वतंत्रता बनाम गुलामी का संघर्ष बन गया।
यह घोषणा तकनीकी रूप से उन सभी दासों को मुक्त घोषित करती थी जो विद्रोही दक्षिणी राज्यों में रहते थे। विडंबना यह थी कि जहां संघ का सीधा नियंत्रण था, वहां यह आदेश तत्काल लागू नहीं हुआ। फिर भी इसका असर कागजी सीमाओं से कहीं आगे गया। जैसे-जैसे यूनियन सेना दक्षिण की ओर बढ़ी, दास इस घोषणा को अपनी आजादी का आधार मानने लगे। कई स्थानों पर सैनिकों से इसे जोर-जोर से पढ़वाया गया और उसी क्षण गुलामी की जंजीरें तोड़ दी गईं।
इस घोषणा ने युद्ध की दिशा ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति को भी बदल दिया। ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देश, जो कॉन्फेडरेसी को मान्यता देने पर विचार कर रहे थे, अब खुलकर समर्थन नहीं कर सके। गुलामी के खिलाफ स्पष्ट रुख के बाद दक्षिणी राज्यों के साथ खड़ा होना नैतिक रूप से असंभव हो गया। इस तरह लिंकन का यह कदम अमेरिका को वैश्विक मंच पर भी एक नैतिक बढ़त दिलाने वाला साबित हुआ।
घरेलू स्तर पर भी इसके गहरे प्रभाव पड़े। एमैंसिपेशन प्रोक्लेमेशन के बाद लगभग 1.8 लाख अश्वेत अमेरिकी यूनियन सेना में शामिल हुए। आगे चलकर 1865 में 13वें संविधान संशोधन ने अमेरिका में दास प्रथा को पूरी तरह अवैध घोषित कर दिया।
इस प्रकार, 1 जनवरी 1863 को किया गया वह हस्ताक्षर—जिससे पहले लिंकन ने अपने कांपते हाथ को स्थिर होने दिया—केवल एक प्रशासनिक कार्य नहीं था। वह क्षण अमेरिकी इतिहास का नैतिक मोड़ था।
--आईएएनएस
केआर/
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
/newsnation/media/agency_attachments/logo-webp.webp)
Follow Us