शहीदी दिवस पर फातिहा पढ़ने से रोकने के मामले में राजनीति तेज, उमर अब्दुल्ला के समर्थन में उतरे कई विपक्षी नेता

शहीदी दिवस पर फातिहा पढ़ने से रोकने के मामले में राजनीति तेज, उमर अब्दुल्ला के समर्थन में उतरे कई विपक्षी नेता

शहीदी दिवस पर फातिहा पढ़ने से रोकने के मामले में राजनीति तेज, उमर अब्दुल्ला के समर्थन में उतरे कई विपक्षी नेता

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IANS
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Omar Abdullah Pays Tribute to July 13 Martyrs

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 14 जुलाई (आईएएनएस)। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को श्रीनगर के नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान में कब्रों पर फातिहा पढ़ने और फूल चढ़ाने का वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। उनके यहां पहुंचने के दौरान हंगामा भी हुआ।

उन्हें रोकने की कोशिश की गई। इसको लेकर तमिलनाडु के सीएम एम के स्टालिन ने अपना पक्ष रखा है और उमर अब्दुल्ला का समर्थन करते हुए, लोकतंत्र के असुरक्षित होने की दुहाई दे डाली है।

दरअसल, 1900 से 1930 के दौरान जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम समुदायों ने तत्कालीन महाराजा हरि सिंह के खिलाफ आवाज उठाई थी और 13 जुलाई 1931 को महाराज की सेना से झड़प में 22 लोग मारे गए थे। जिसके बाद उमर के दादा शेख अब्दुल्ला ने 1949 में 13 जुलाई को शहीदी दिवस घोषित किया। इस शहीदी दिवस को लेकर घाटी से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के पहले तक शासकीय अवकाश रहता था। लेकिन, अब इसे खत्म कर दिया गया है।

उमर अब्दुल्ला ने इसको लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया, जिसमें उनकी झड़प होती दिखाई गई है। पुलिस के जवान उन्हें आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं।

सीएम अब्दुल्ला ने इस पोस्ट में लिखा, मुझे इसी तरह शारीरिक रूप से हाथापाई का सामना करना पड़ा, लेकिन मैं ज्यादा मजबूत स्वभाव का हूं और मुझे रोका नहीं जा सकता था। मैं कोई भी गैरकानूनी या अवैध काम नहीं कर रहा था। दरअसल, इन कानून के रखवालों को यह बताना होगा कि वे किस कानून के तहत हमें फातिहा पढ़ने से रोक रहे थे।

दरअसल, सीएम उमर अब्दुल्ला को 13 जुलाई को यहां पहुंचने नहीं दिया गया। लेकिन, वह 14 जुलाई को यहां पहुंचे तो उन्हें रोकने की कोशिश की गई और उन्होंने दीवार फांदकर अंदर प्रवेश किया।

इसके साथ ही अब्दुल्ला ने लिखा, अनिर्वाचित सरकार ने मेरा रास्ता रोकने की कोशिश की और मुझे नौहट्टा चौक से पैदल चलने पर मजबूर किया। उन्होंने नक्शबंद साहब की दरगाह का दरवाजा बंद कर दिया और मुझे दीवार फांदने पर मजबूर किया। उन्होंने मुझे शारीरिक रूप से पकड़ने की कोशिश की, लेकिन आज मैं रुकने वाला नहीं था।

उनके पोस्ट को री-पोस्ट करते हुए तमिलनाडु के सीएम एम के स्टालिन ने लिखा, ऐसे समय में जब जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग जोर पकड़ रही है, वहां हो रही घटनाएं इस बात की भयावह याद दिलाती हैं कि हालात कितने बिगड़ चुके हैं। वहां के निर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को सिर्फ 1931 के शहीदों को श्रद्धांजलि देने की इच्छा रखने पर नजरबंद किया जा रहा है और ऐसा करने के लिए उन्हें दीवारों पर चढ़ने पर मजबूर किया जा रहा है। क्या एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के साथ ऐसा व्यवहार होना चाहिए? यह सिर्फ एक राज्य या एक नेता की बात नहीं है। तमिलनाडु से लेकर कश्मीर तक, केंद्र की भाजपा सरकार निर्वाचित राज्य सरकारों के अधिकारों को व्यवस्थित रूप से छीन रही है। अगर यह कश्मीर में हो सकता है, तो यह कहीं भी, किसी भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि के साथ हो सकता है। हर लोकतांत्रिक आवाज को इसकी खुलकर निंदा करनी चाहिए।

इसके साथ ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट में लिखा, शहीदों की कब्र पर जाने में क्या गलत है? यह न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि एक नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकार को भी छीनता है। आज सुबह एक निर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के साथ जो हुआ, वह अस्वीकार्य है। चौंकाने वाला। शर्मनाक।

उमर अब्दुल्ला को रोके जाने वाली वीडियो शेयर करते हुए यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लिखा, तुम यूं ही हर बात पर पाबंदियों का दौर लाओगे, तो जब बदलेगी हुकूमत तो तुम ही बताओ, तुम किस सरहद को फांद कर जाओगे।

--आईएएनएस

जीकेटी/

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