रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग जो मशहूर है 'कामना लिंग' के नाम से, जहां बाबा मंदिर के शिखर पर 'त्रिशूल' नहीं लगा है 'पंचशूल'

रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग जो मशहूर है 'कामना लिंग' के नाम से, जहां बाबा मंदिर के शिखर पर 'त्रिशूल' नहीं लगा है 'पंचशूल'

रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग जो मशहूर है 'कामना लिंग' के नाम से, जहां बाबा मंदिर के शिखर पर 'त्रिशूल' नहीं लगा है 'पंचशूल'

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IANS
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रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग जो मशहूर है 'कामना लिंग' के नाम से, जहां बाबा मंदिर के शिखर पर 'त्रिशूल' नहीं लगा है 'पंचशूल'

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 3 जुलाई (आईएएनएस)। महादेव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में से पांचवें नंबर पर आता है बाबा बैद्यनाथ धाम। जिसे रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग या फिर कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है। यह द्वादश ज्योतिर्लिंग में अकेला ऐसा शिवलिंग है, जहां माता पार्वती और महादेव एक साथ विराजते हैं। कहते हैं यहां माता सती का हृदय भाग गिरा था। ऐसे में यहां दर्शन-पूजन से भक्तों को महादेव के साथ माता पार्वती का भी आशीर्वाद मिलता है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसलिए इसे मनोकामना लिंग या कामना लिंग भी कहा जाता है।

अब आपको बता दें कि त्रिशूल और पंचशूल में क्या अंतर है। दरअसल, त्रिशूल भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बोधक हैं, वहीं अध्यात्म और सनातन धर्म के अनुसार पंचशूल ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतीक है।

झारखंड के देवघर में स्थित बाबा बैद्यनाथ के इस धाम को शिव-शक्ति का मिलन स्थल माना जाता है। इसके साथ ही यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां शिव-शक्ति एकसाथ विराजमान हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह हृदय पीठ या हृदय तीर्थ के नाम से भी मशहूर है। यहां का शक्तिपीठ देवी पार्वती के एक रूप जया दुर्गा को समर्पित है। जहां पर यह मंदिर स्थित है उस स्थान को देवघर अर्थात देवताओं का घर कहते हैं।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में इसके बारे में वर्णित है....

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम् |

सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ||

जो भगवान शंकर पूर्वोत्तर दिशा में चिताभूमि वैद्यनाथ धाम के अन्दर सदा ही पार्वती सहित विराजमान हैं, और देवता व दानव जिनके चरण कमलों की आराधना करते हैं, उन्हीं ‘श्री वैद्यनाथ’ नाम से विख्यात शिव को मैं प्रणाम करता हूं।

बाबा बैद्यनाथ के इस मंदिर परिसर में 22 मंदिर हैं। इनके बारे में पौराणिक मान्यता है कि देवताओं के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने इन 22 मंदिरों का निर्माण एक पत्थर को एक रात में तराश कर किया था। मंदिर के निर्माण के दौरान उजाला होने लगा तो एक मंदिर अधूरा रह गया।

अब बाबा के मंदिर के ऊपर लगे पंचशूल के बारे में बताते हैं। इसे सुरक्षा कवच के तौर पर पौराणिक ग्रंथों में वर्णित किया गया है। कहते हैं कि ऐसा ही पंचशूल रावण ने लंका के चारों तरफ लगाया था, जिससे वह पूरी तरह से सुरक्षित हो गई थी। बाबा बैद्यनाथ के मंदिर के ऊपर लगे इस सुरक्षा कवच की वजह से ही आज तक किसी भी प्राकृतिक आपदा का इस मंदिर पर असर नहीं हुआ है। यहां भगवान शिव और माता पार्वती के मंदिर के शिखर के गठबंधन की परंपरा है।

मान्यता है कि देवघर में पंचशूल के दर्शन मात्र से ही जीवन के पांच कष्ट रोग, दुख, भय, काल और दरिद्रता समाप्त हो जाते हैं। इसके साथ एक मान्यता यह भी है कि जब महादेव पंचमुखी रूप में अवतरित होते हैं तो वह पंचशूल धारण करते हैं। इसके साथ ही इस पंचशूल को पांच तत्वों क्षितिज, जल, पावन, गगन, समीर का प्रतीक भी माना गया है। इसके साथ ही भगवान शिव को भी पंचानंद कहा जाता है। यह पंचशूल उन्हीं पंचानंद का प्रतीक है।

बाबा बैद्यनाथ धाम के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहां पहले शक्ति की स्थापना हुई और फिर शिवलिंग की स्थापना हुई। सती के हृदय भाग के ऊपर भगवान भोले का शिवलिंग स्थित है। इसलिए इसे शिव और शक्ति का मिलन स्थल भी कहा जाता है।

बाबा बैद्यनाथ के मंदिर परिसर में उत्तर दिशा में मां काली, मां तारा, गौरी शंकर और अन्नपूर्णा देवी का मंदिर स्थापित है। दक्षिण दिशा में मां सरस्वती, माता मनसा देवी, हनुमान, कुबेर भगवान, महाकाल भैरव, संध्या माता, भगवान ब्रह्मा और गणेश स्थापित हैं। इसी तरह पश्चिम दिशा में आनंद भैरव, राम-सीता, लक्ष्मण मंदिर, बंगला देवी, सूर्य नारायण भगवान का मंदिर स्थापित है। जबकि, पूर्व दिशा में मां पार्वती, नीलकंठ भगवान, चंद्रगुप्त भगवान, लक्ष्मी नारायण भगवान का मंदिर स्थापित है।

झारखंड के देवघर में ही बाबा बैद्यनाथ मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर दूर नौलखा मंदिर है। यह राधा-कृष्‍ण का मंदिर है। मंदिर के निर्माण में 9 लाख रुपए लगे थे, इसलिए इस मंदिर का नाम नौलखा मंदिर पड़ा।

बैद्यनाथ मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर नंदन पहाड़ है। जहां शिवजी, पार्वतीजी, गणेशजी और कार्तिकेय जी के मंदिर के साथ नंदी मंदिर बना है।

बैद्यनाथ मंदिर से लगभग 13 किलोमीटर दूर तपोवन पर्वत है। यहां पर तपोनाथ महादेव का मंदिर है। पर्वत के नीचे एक जलकुंड है। ऐसा कहते हैं कि माता सीता इसमें स्‍नान करती थीं।

देवघर से लगभग 10 किलोमीटर दूर त्रिकुट पर्वत (2,470 फीट ऊंचा) है। पहाड़ी में तीन मुख्य चोटियां हैं, इसलिए इसका नाम त्रिकुट रखा गया है। रोपवे की सवारी आपको पहाड़ी की चोटी पर ले जाएगी। घने जंगल में प्रसिद्ध त्रिकुटांचल महादेव मंदिर और ऋषि दयानंद का आश्रम है।

बाबा बैद्यनाथ मंदिर से 12 किमी दूर रिखिया आश्रम स्थित है। यह देश के सबसे पुराने योग आश्रमों में से एक है। इसकी स्‍थापना स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने की थी।

बाबा बैद्यनाथ मंदिर से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर दुमका जिले के जरमुंडी के पास बासुकीनाथ मंदिर है। जहां बाबा बैद्यनाथ के दर्शन के बाद श्रद्धालु जरूर बाबा बासुकीनाथ के दर्शन के लिए पधारते हैं। इन्हें नागनाथ भी कहा जाता है। बासुकीनाथ धाम स्थित भगवान भोलेनाथ को ‘फौजदारी बाबा’ के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि यहां एक साथ भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती लोगों की फरियाद और अर्जी सुनते हैं।

--आईएएनएस

जीकेटी/

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