युवाओं में बढ़ रहा हेड और नेक कैंसर का खतरा, तंबाकू और खराब जीवनशैली सबसे बड़ा कारण

युवाओं में बढ़ रहा हेड और नेक कैंसर का खतरा, तंबाकू और खराब जीवनशैली सबसे बड़ा कारण

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IANS
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Scientists reveal key mechanism behind heavy-ion cancer therapy

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 15 अप्रैल (आईएएनएस)। आजकल युवाओं में हेड और नेक कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जो चिंता का विषय बन गया है। इसी को देखते हुए अप्रैल में हेड और नेक कैंसर जागरूकता माह मनाया जाता है, ताकि लोगों को इस कैंसर के बारे में जागरूक किया जा सके।

इसी को देखते हुए आईएएनएस ने सीके बिरला अस्पताल के विशेषज्ञ डॉ. मंदीप मल्होत्रा से खास बातचीत की।

डॉ. मल्होत्रा ने बताया कि इस कैंसर के पीछे कई कारण हैं, जिनमें सबसे बड़ा है तंबाकू का सेवन। बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, गुटखा, सुपारी, जर्दा या खैनी- ये सभी आदतें युवाओं को कम उम्र में ही कैंसर की बीमारी दे रहे हैं। इसके अलावा शराब का सेवन, वायु और जल प्रदूषण, खाने में कीटनाशकों व रसायनों की मिलावट भी कैंसर के खतरे को बढ़ा रहे हैं। तनाव, अनियमित नींद और अस्वास्थ्यकर खान-पान जैसी आधुनिक जीवनशैली की समस्याएं भी इस बीमारी को बढ़ावा दे रही हैं।

हेड और नेक कैंसर को समझने के लिए डॉ. मल्होत्रा ने इसे आसान भाषा में परिभाषित किया।

उनके अनुसार, यह कैंसर सिर और गर्दन के हिस्सों में होता है। इसमें मुंह, जीभ, गाल की अंदरूनी त्वचा, गला, टॉन्सिल, आवाज की नली, खाने की नली का ऊपरी हिस्सा, नाक, साइनस और आंखों के आसपास की हड्डियां शामिल हैं। कुछ मामलों में थायरॉइड और पैरोटिड ग्रंथि का कैंसर भी इसी श्रेणी में आता है। यह बीमारी किसी को भी हो सकती है, लेकिन तंबाकू और शराब का सेवन करने वालों में इसका जोखिम ज्यादा होता है।

इस कैंसर के शुरुआती लक्षणों को पहचानना बेहद जरूरी है। डॉ. मल्होत्रा ने बताया कि मुंह में छाला जो ठीक न हो, जीभ या गाल में गांठ, आवाज में बदलाव, निगलने में दिक्कत, गले में खराश या दर्द, कान में दर्द, गर्दन में सूजन या गांठ, नाक से खून या काला म्यूकस जैसे लक्षण दिख सकते हैं। अगर ये लक्षण लंबे समय तक रहें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। शुरुआती जांच से इलाज आसान हो सकता है।

हेड और नेक कैंसर का निदान कैसे होता है। इस पर डॉ. मल्होत्रा ने बताया कि अगर कोई घाव या गांठ ठीक नहीं हो रही, तो बायोप्सी की जाती है। इसमें प्रभावित हिस्से से ऊतक का नमूना लेकर जांच की जाती है। सीटी स्कैन, एमआरआई या पेट स्कैन जैसे टेस्ट से कैंसर की स्टेज और फैलाव का पता लगाया जाता है। अब नई तकनीक ‘लिक्विड बायोप्सी’ भी आ रही है, जिसमें खून के नमूने से कैंसर का पता लग सकता है। यह उन मामलों में मददगार है, जहां बायोप्सी करना मुश्किल होता है।

डॉ. मल्होत्रा के अनुसार, इलाज के बाद कैंसर दोबारा हो सकता है, खासकर अगर मरीज तंबाकू या शराब जैसी आदतें नहीं छोड़ता। एडवांस स्टेज वाले कैंसर में यह खतरा ज्यादा होता है। मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी इसमें अहम भूमिका निभाती है। अब लिक्विड बायोप्सी जैसे टेस्ट से इलाज के बाद भी निगरानी की जा सकती है, जिससे कैंसर के दोबारा उभरने की स्थिति का जल्दी पता लगाया जा सकता है।

डॉ. मल्होत्रा ने जोर देकर कहा कि जागरूकता और स्वस्थ जीवनशैली ही इस बीमारी से बचाव का रास्ता है। युवाओं को बुरी आदतों से बचना होगा और समय-समय पर अपनी जांच करानी होगी, तभी इससे बचाव संभव है।

--आईएएनएस

एसएचके/जीकेटी

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