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भाई-बहन की जोड़ी : प्रियंका और राहुल ने संसद में नेहरू-गांधी परिवार की ऐतिहासिक उपस्थिति को किया पुनर्जीवित

भाई-बहन की जोड़ी : प्रियंका और राहुल ने संसद में नेहरू-गांधी परिवार की ऐतिहासिक उपस्थिति को किया पुनर्जीवित

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IANS
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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

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नई दिल्ली, 28 नवंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने गुरुवार, 28 नवंबर को लोकसभा में सांसद के रूप में शपथ लेकर अपनी चुनावी यात्रा की शुरुआत की। प्रियंका गांधी अपने भाई राहुल गांधी के बाद वर्तमान लोकसभा में शामिल होने वाली नेहरू-गांधी परिवार की दूसरी सदस्य बन गईं। वह वायनाड निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। जवाहरलाल नेहरू और विजया लक्ष्मी पंडित के बाद यह पहली बार है कि नेहरू-गांधी परिवार से भाई-बहन की जोड़ी सदन में मौजूद रहेगी। भारत के संसदीय इतिहास में, एक संक्षिप्त अवधि को छोड़कर, ऐसा कभी नहीं हुआ, जब नेहरू-गांधी परिवार का कम से कम एक सदस्य लोकसभा का सदस्‍य नहीं था। कुछ मौकों पर, नेहरू-गांधी परिवार के पांच सदस्यों ने एक साथ सदन में कार्य किया है।

राहुल और प्रियंका की मां सोनिया गांधी लंबे समय तक लोकसभा सांसद रहीं और वर्तमान में राजस्थान से राज्यसभा सांसद हैं। यह पहली बार है कि गांधी परिवार से एक मां और उनके दो बच्चे संसद सदस्य के रूप में काम करेंगे। संसद में प्रियंका और राहुल की संयुक्त उपस्थिति एक ऐतिहासिक मिसाल को भी पुनर्जीवित करती है। 71 साल पहले, 1953 में, नेहरू परिवार से जवाहरलाल नेहरू और विजया लक्ष्मी पंडित की भाई-बहन की जोड़ी को संसद में एक साथ देखा गया था।

आइए शुरू से लोकसभा में नेहरू-गांधी परिवार के प्रतिनिधित्व पर एक नजर डालें :

पहली लोकसभा : पहले आम चुनाव (1951-52) के दौरान नेहरू-गांधी परिवार के पांच सदस्यों ने जीत हासिल की। जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद से चुने गए, जबकि उनके दामाद फिरोज गांधी रायबरेली से जीते। सीतापुर से उमा नेहरू जीतीं। उमा नेहरू के पति, श्याम लाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू के चचेरे भाई थे। नेहरू की बहन विजया लक्ष्मी पंडित लखनऊ सीट से जीतीं। उनके बाद, उसी परिवार की श्योराजवती नेहरू ने विजया लक्ष्मी पंडित के संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष बनने और 1953 में लोकसभा से इस्तीफा देने के बाद लखनऊ जिले से उपचुनाव जीता।

दूसरी लोकसभा : इन चुनावों (1957) में नेहरू-गांधी परिवार के केवल तीन सदस्य जवाहरलाल नेहरू, उमा नेहरू और फि‍रोज गांधी चुने गए, हालांकि 1960 में फिरोज गांधी का निधन हो गया।

तीसरी लोकसभा : 1962 में, जवाहरलाल नेहरू परिवार से एकमात्र प्रतिनिधि थे, और 1964 में उनकी मृत्यु के बाद, उनकी बहन विजया लक्ष्मी पंडित ने उपचुनाव में उनकी सीट भरी।

चौथी लोकसभा (1967) : नेहरू की मृत्यु के बाद यह पहला चुनाव था और नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद वह इस पद पर आसीन होने वाली पहली महिला थीं। फूलपुर सीट से विजया लक्ष्मी पंडित ने जीत हासिल की।

पांचवीं लोकसभा (1971) : इंदिरा गांधी फिर से रायबरेली से जीतीं, और उनकी चाची शीला कौल, नेहरू-गांधी परिवार का प्रतिनिधित्व करते हुए लखनऊ से जीतीं।

छठी लोकसभा (1977) : इस चुनाव में पहली बार नेहरू-गांधी परिवार का कोई भी सदस्य लोकसभा के लिए नहीं चुना गया। इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी चुनाव हार गए। हालांकि, इंदिरा गांधी 1978 में कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव जीतकर संसद लौट आईं।

1980 लोकसभा चुनाव : संजय गांधी ने एक बार फिर अमेठी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उनकी मां इंदिरा गांधी ने आंध्र प्रदेश में मेडक और रायबरेली दोनों सीटों से चुनाव लड़ा और दोनों पर जीत हासिल की। यह पहली बार है जब मां-बेटे की जोड़ी एक साथ संसद में पहुंची। चुनाव के बाद, इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट खाली कर दी और उपचुनाव हुआ। इसे नेहरू परिवार के रिश्तेदार अरुण नेहरू ने जीता। अरुण नेहरू उमा नेहरू के पोते थे, जिन्होंने पहले 1951 और 1957 में लोकसभा सीट जीती थी। इसी तरह, इंदिरा की चाची शीला कौल एक बार फिर लखनऊ सीट जीतने में सफल रहीं। सिर्फ एक चुनाव के अंदर ही लोकसभा में नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों की संख्या चार हो गई।

चुनाव नतीजों के कुछ महीने बाद एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, उनके छोटे भाई राजीव गांधी ने अमेठी से उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल की, और लोकसभा में प्रवेश किया।

चार साल बाद, नेहरू-गांधी परिवार को एक और बड़े संकट का सामना करना पड़ा। इसका असर कांग्रेस पार्टी पर भी पड़ा। 31 अक्टूबर 1984 को देश की प्रधानमंत्री और कांग्रेस की सबसे प्रमुख नेता इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। उनकी मृत्यु के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने भारी जीत दर्ज की। राजीव गांधी अमेठी से, अरुण नेहरू रायबरेली से और शीला कौल लखनऊ से जीतीं।

1989 लोकसभा चुनाव : कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। राजीव गांधी के कई करीबियों ने पार्टी छोड़ दी, जबकि राजीव गांधी ने अमेठी से जीत हास‍िल की।

1991 लोकसभा चुनाव : इन चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की दुखद हत्या हुई। चुनाव के दौरान वह अमेठी सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार थे। उनकी मृत्यु के बाद जब नतीजे घोषित हुए तो राजीव को मरणोपरांत अमेठी से विजेता घोषित किया गया। हालांकि, उनके निधन के कारण इस सीट पर उपचुनाव हुआ, जिसे उनके करीबी कैप्टन सतीश शर्मा ने जीता। इस बीच, इंदिरा गांधी की चाची शीला कौल एक बार फिर रायबरेली से जीत हास‍िल कर लोकसभा में लौट आईं।

सोनिया गांधी और नए नेतृत्व की शुरुआत : 1998 में सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया और 1999 में अमेठी से लोकसभा चुनाव जीता। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 2004 और 2009 के आम चुनावों में महत्वपूर्ण जीत हासिल की। उनके बेटे राहुल गांधी ने 2004 में अमेठी से चुनाव लड़ा और संसद में अपनी छाप छोड़ी।

2014 और 2019 लोकसभा : संसद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाले राहुल गांधी और सोनिया गांधी के साथ नेहरू-गांधी की विरासत जारी रही।

--आईएएनएस

सीबीटी/

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