नई दिल्ली, 19 अक्टूबर (आईएएनएस)। मुझे ये सब कुछ आता है, मैं उससे बेहतर हूं...मैं तो कभी हार ही नहीं सकता/सकती...अगर आप भी यही सोचते हैं तो यकीन मानें आप नार्सिसिज्म के शिकार हैं। मैं ही मैं दूसरा कोई नहीं सोच शख्स के करियर को ऊंचाइयों पर तो पहुंचा सकती है लेकिन रिश्तों के मामले में उसे पछाड़ सकती है। हिंदी में इसे आत्ममुग्धता कहते हैं। आयुष निदेशालय दिल्ली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसएजी) और इहबास इकाई के प्रभारी डॉक्टर अशोक शर्मा ने आईएएनएस से बातचीत में इससे जुड़े बड़े दिलचस्प फैक्ट्स साझा किए।
नार्सिसिज्म या आत्ममुग्धता किसी को भी हो सकती है। स्कूल जाता बच्चा, दफ्तर में काम करता शख्स या फिर घर के बड़े बुजुर्ग किसी को भी! उम्र या माहौल से इसका लेना देना नहीं। एको अहम का भाव होता है।
डॉ अशोक शर्मा इसे सेल्फ एस्टीम डिसऑर्डर का नाम भी देते हैं। मतलब अपने सम्मान की रक्षा के लिए दीवानगी की हद तक गुजर जाना। कहते हैं व्यक्ति आत्म केंद्रित हो जाता है वो ये मान लेता है कि मैं ही अच्छा हूं। इनसे डील करना भी टेढ़ी खीर होती है। अगर दूर के रिश्ते में हैं तो निपटना आसान होता है लेकिन करीबी है तो बहुत मुश्किल भी। लेकिन सबसे पहले उन लक्षणों को पहचानना जरूरी है जो बताते हैं कि आप नार्सिसिस्ट हैं।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसे शख्स करियर में अच्छा कर सकते हैं लेकिन संबंधों को सहेजने में मात खा जाते हैं। इसकी वजह है कि फोकस्ड होते हैं इसलिए जो ठान लेते हैं उसे कर दिखाते हैं। वहीं रिलेशनशिप में खुद को हावी करने का अंदाज भारी पड़ जाता है।
तो पहचान ये है कि अगर कोई हद से ज्यादा खुद को दूसरे पर हावी करने का प्रयास करे, दूसरे से तवज्जो पाने की कोशिश करे, किसी के दर्द से दुख से सहानुभूति न दिखाए तो समझ लीजिए वो नार्सिसिस्टिक पर्सनालिटी डिसऑर्डर का शिकार है।
डॉ कुमार के मुताबिक, ऐसे शख्स अपनी बात को पूरे जोर शोर से उठाते हैं। अपनी ही बात करते हैं। बात प्रेजेंट करने के तरीके में माहिर होते हैं हालांकि इसका मतलब ये कतई नहीं होता कि वो बहुत ज्ञानी होते हैं। दलील सामान्य ही होती है लेकिन अगर उन दलीलों से आप इत्तेफाक नहीं रखते या फिर उन्हें काटने की कोशिश करते हैं तो उग्र हो जाते हैं।
फिर इनसे बचने का उपाय क्या है? विशेषज्ञ की राय है कि जितना हो सके डिस्टेंस मेंटेन करें अगर फैमिली मेंबर हैं तो बातों को सुने शांति से रिएक्ट करें। अगर ऐसा नहीं किया तो रिश्तों में खटास आ सकती है क्योंकि ये लोग हाइपर सेंसिटिव होते हैं और मूड का भी अता पता नहीं चलता।
वहीं अगर ऑफिस में कोई सहकर्मी, बॉस नार्सिसिस्ट है तो सबसे अच्छी तरीका यही है कि जिस समय वो गलत बात भी रख रहा हो उसकी हां में हां मिला दें। गलत हैं ये न बताएं लेकिन थोड़ी देर बाद जरूर कहें कि एक ही प्रश्न के दो उत्तर हो सकते हैं।
अगर नार्सिसिस्ट शख्स को ये पता चल जाए कि वो इस डिसऑर्डर से जूझ रहा है तो क्या वो खुद को बचाने की भी कोशिश करता है?
डॉ अशोक कहते हैं बिलकुल। इसे नार्सिसिस्ट गैसलाइटिंग कहते हैं। ऐसे लोग हेरा फेरी में माहिर होते हैं। सहानुभूति दर्शाते नहीं हैं लेकिन हासिल करने में माहिर होते हैं। बात बनाने में शातिर। खास सलाह उन लोगों को जो प्रेम संबंधों में पड़ते हैं। किसी के साथ रिश्ते में आने से पहले अच्छी तरह से समझ बूझ लेना चाहिए। हो सकता है कि कल जो आपके लिए आसमान से तारे तोड़ कर लाने को तैयार था वो मजबूत रिश्ते में बंधने के बाद वैसा रहा ही नहीं। उसके साथ समय बिताने में घुटन महसूस होने लगती है।
नार्सिसिज्म की शिकायत जेनेटिक भी हो सकती है और बचपन से जुड़ी किसी बात से भी। मतलब बचपन दबाव में बीता हो, बहुत सी दिक्कतों का सामना किया हो तो हो सकता है आप आत्ममुग्ध हो जाएं। अगर स्थिति बेकाबू होने लगे तो डिसऑर्डर को मैनेज करने के लिए अच्छे मनोचिकित्सक से मिला जा सकता है।
अंत में डॉक्टर अशोक पते की बात करते हैं। कहते हैं हर इंसान आत्ममुग्ध होता है। कोई ज्यादा तो कोई कम। हमारे सनातन धर्म में भी सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों का जिक्र है। सुबह हम सात्विक गुणों का निर्वहन करते हैं, दोपहर में राजसिक और रात में तामसिक गुणों का। सुबह के समय सात्विक रहना हमारे लिए उचित है। वहीं अगर प्रातः हम तामसिक प्रवृत्ति का अनुसरण करें तो उल्टा असर होगा। वैसे ही हर परिस्थिति, काल के अनुसार व्यवहार ही तय करता है कि आप की आत्ममुग्धता का स्तर क्या है!
--आईएएनएस
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