नई दिल्ली, 17 अक्टूबर (आईएएनएस)। प्रियंक कानूनगो को 13 अक्टूबर 2021 को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अब अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त हो गया है। उन्होंने इस पद पर रहते हुए देश के लिए क्या योगदान दिया, इस पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि उन्हें पेशेवर और व्यक्तिगत रूप से अपने व्यक्तित्व को विकसित करने का अवसर मिला और उन्होंने अपने देश के भविष्य को मजबूत करने के लिए काम किया।
उन्होंने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, यह आपके लिए ऐसा अवसर है, जब व्यक्ति खुद को नया रूप दे सकता है। मेरा हमेशा से मानना रहा है कि काम करने का यह अवसर उन्हीं को मिलता है, जिन्हें प्रकृति कुछ ऐसा करने के लिए प्रेरित करती है, जो टिकाऊ हो और जो अगली पीढ़ी के काम आए। इसी भावना के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन को देखें कि जो जीवन किसी और के काम आ सके, वही मनुष्य का जीवन है। अपने जीवन के इसी सिद्धांत को अपनाकर उन्होंने अपना काम किया और मैं मानता हूं कि इतने बदलावों के बीच इस दौरान मेरे भीतर एक आध्यात्मिक चेतना भी विकसित हुई और मेरा मन देश और बच्चों की ओर झुका। प्रधानमंत्री के प्रति मेरे मन में आदर का भाव है कि उन्होंने मुझे अवसर दिया और भारत का भविष्य बनाने की उनकी मुहिम में हम काम आ रहे हैं।
मदरसों को लेकर आप काफी चर्चा में रहे हैं और कई लोगों के निशाने पर भी रहे हैं। मदरसों में जिस तरह की शिक्षा व्यवस्था है, उससे बच्चे वंचित रह जाते हैं। इस कदम के बारे में आप क्या सोचते हैं? एनसीपीसीआर के चेयरमैन के तौर पर आपको इसमें कितनी सफलता मिली है और इसमें अभी और क्या सुधार की जरूरत है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, हम बहुत कुछ हासिल कर सकते थे लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगा कि देश में समझ विकसित करने का काम हुआ है, देशभर में विचार बनाने का काम हुआ है और लोगों को समझ में आया है कि मदरसा वो जगह नहीं है, जहां बच्चे पढ़ने जाएं, बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल जाना पड़ेगा, मदरसे में पढ़ाई के लिए कोई माहौल नहीं है, मदरसे को सरकारी फंडिंग देना पूरी तरह से गलत है, ये समुदाय की जिम्मेदारी है, समुदाय को बच्चों को स्कूल में पढ़ाना चाहिए, ये सरकार की जिम्मेदारी है, कोई भी राज्य सरकार इससे खुद को नहीं बचा सकती है, इसलिए आयोग में रहते हुए हमने पूरी ईमानदारी से किया, आज हम देश के बच्चों की आंखों में देखकर कह सकते हैं कि हमने अपना काम ईमानदारी से किया है, आगे का सफर संघर्ष का रास्ता है और मैं व्यक्तिगत रूप से देश के सबसे गरीब मुस्लिम बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए संघर्ष करूंगा।
कई राज्यों में विपक्ष की सरकारें हैं, तो क्या आपको वहां काम करने के लिए समर्थन मिला? इस पर उन्होंने कहा, नहीं, मैं यह नहीं मान सकता कि मुझे हर राज्य में पूरा समर्थन मिला। पश्चिम बंगाल में मुझ पर जानलेवा हमला हुआ। कर्नाटक में मेरे खिलाफ झूठे मामले में एफआईआर दर्ज की गई, सरकार अपनी गलतियों को छिपाने के लिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का गला घोंट रही है और उनका मुंह बंद कर रही है और अपने भ्रम में जीना चाहती है कि सब कुछ वास्तविकता से कोसों दूर है। सरकार को आयोगों को आइना दिखाना चाहिए, एक मानवाधिकार कार्यकर्ता कहना चाहता है कि उन्हें अपना अहंकार त्यागना चाहिए और सभी को बच्चों की सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन के लिए सहायता कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए।
आपको अभी भी किस क्षेत्र में लगता है कि आप थोड़ा और काम कर सकते थे या सरकारों से आपको और सहयोग मिलता तो और अच्छा होता। इस पर उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए राज्य सरकारों से सहयोग मिलता था, जिसमें पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार, केरल की राज्य सरकार ने निजी स्कूलों में बहुत गरीब बच्चों के दाखिले के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया, केरल और पंजाब की सरकारों ने अपनी हठधर्मिता के कारण जीसस की मूर्ति लगाकर गरीब बच्चों के लिए स्कूलों के दरवाजे बंद कर दिए, उन्हें दिक्कत हुई और उन्होंने ऐसा नहीं किया, जो गरीब बच्चे अपनी आवाज उठाने में असमर्थ हैं, उनकी आवाज बनकर काम करने वालों को दबाने की कोशिश करना गलत है, लेकिन एक और बात जो आज यहां है, सभी राज्य सरकारों को बच्चों के अधिकारों के संबंध में केंद्रीय कानून का पालन करना चाहिए।
--आईएएनएस
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