नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। क्या कोई सोच सकता है कि भाजपा में एक दौर में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं को कोई यह कह सकता था कि अब उन्हें रिटायर हो जाना चाहिए। उन्हें अब युवाओं को मौका देना चाहिए। यह काम किया था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक रहे कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन ने। उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की हार के बाद इन दोनो नेताओं से यह कहते हुए अपना पक्ष रखा था कि भाजपा को चलाने के लिए अब नए और युवा नेताओं की जरूरत है।
उनके इस बयान पर अटल बिहारी वाजपेयी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया था कि अधिक उम्र के नेताओं को सेवानिवृत हो जाना चाहिए। अब वे ख़ुद तो किसी पद पर नहीं हैं। लेकिन अभी पद से हटने का फ़ैसला पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी को और पार्टी को करना है।
स्वभाव से सरल और तेवर से अपने विरोधियों को चित्त करने वाले संघ के पूर्व सरसंघ चालक केएस सुदर्शन अपनी वाकपटुता और कट्टर लहजे के लिए जाने जाते थे।
उनकी कट्टरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक बार हिंदुओं से अपील करते हुए कहा था कि हिंदुओं को कम से कम तीन बच्चे पैदा करने चाहिए ताकि वे हिन्दू धर्म, संस्कृति और समाज की रक्षा कर सकें। अपनी कड़क और कट्टर छवि के बावजूद उन्होंने ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की स्थापना की। यह जानकारी भी कई स्त्रोतों से प्राप्त की गई है।
कई स्त्रोतों से इकट्ठा जानकारी के मुताबिक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरसंघ ने तब कांग्रेस प्रमुख रहीं सोनिया गांधी पर राजीव गांधी की हत्या का आरोप लगया था, जिसके बाद कांग्रेस ने संसद में इस विषय पर काफी हंगामा भी किया था। हालांकि इसका उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह अपने पूरे कार्यकाल के दौरान सोनिया गांधी पर हमलावर रहे।
उनका कश्मीर और कश्मीर के मामले पर भी अलग दृष्टिकोण था। उनका मनना था कि कश्मीर समस्या के लिए नेहरू और लॉर्ड माउंटबेटन जिम्मेदार हैं, जबकि जिन्ना बाल गंगाधर तिलक की तरह संयुक्त भारत के पक्षधर थे।
बताते हैं कि 1964 में जब तत्कालीन संघ प्रमुख माधव सदाशिव गोलवलकर ने कार्यकर्ता बैठक में सुदर्शन का परिचय कराया, तो उस समय वह माइक ठीक कर रहे थे। इस समय, गोलवलकर ने सुदर्शन की तरफ इशारा किया और कहा कि इस दुबले-पतले लड़के को माइक वाला मत समझ लेना। वह टेली कम्युनिकेशन इंजीनियर हैं और आज से आपका प्रांत प्रचारक बन गया है।
स्वास्थ्य कारणों से जब उन्होंने संघ प्रमुख का पद छोड़ा, उसके बाद भी वह सक्रिय रहे। उन्होंने बाल-किशोर शाखाओं में भाग लिया और संघ के गुरुदक्षिणा कार्यक्रम को विस्तारित किया। 18 जून 1931 को रायपुर में जन्मे कुप्पाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन का निधन 15 सितंबर 2012 को हो गया। संघ में उनकी छोटी समयावधि में दिये अमूल्य योगदान और उनके विचारों को हमेशा याद किया जाता रहेगा।
--आईएएनएस
पीएसएम/जीकेटी
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.