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शरतचंद्र चट्टोपाध्याय : पारो, चंद्रमुखी और पाठकों के 'देवदास', हर शब्द से जीत लिया दिल

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय : पारो, चंद्रमुखी और पाठकों के 'देवदास', हर शब्द से जीत लिया दिल

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IANS
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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

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नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। मशहूर फिल्म देवदास का नाम किसने नहीं सुना होगा। फिल्म के तीन पात्र देवदास, पारो और चंद्रमुखी आज भी लोगों के दिलों में अमर हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इस फिल्म की कहानी को किसी नॉवेल से लिया गया था। इस नॉवेल को लिखने वाले का नाम है शरत चंद्र चट्टोपाध्याय। वो बांग्ला भाषा के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे।

शरतचंद्र ने साल 1901 में देवदास की रचना की थी। लेकिन, बहुत कम लोग जानते होंगे कि वो खुद अपनी लिखी कहानी देवदास को पसंद नहीं करते थे। उनका मानना था कि इंडियन सोसाइटी नॉवेल के मुख्य किरदार देवदास को शराबखोरी के कारण नीची नजरों से देखेगी।

शरतचंद्र को देवदास के मुकाबले चरित्रहीन और श्रीकांत पसंद थी। शायद यही कारण था, देवदास के लिखने के 16 साल बाद 1917 में उनके एक दोस्त ने बड़ी मशक्कत के बाद देवदास को किताब की शक्ल दी।

शरतचंद्र की लिखी रचना देवदास का पहली बार पिक्चराइजेशन 1928 में हुआ था। फिल्म निर्देशक नरेश मित्र की बनाई देवदास पहली साइलेंट मूवी थी। उसके बाद से लेकर अब तक देवदास पर आधारित तेलुग, तमिल, उर्दू जैसी कई भाषाओं में लगभग 16 से ज्यादा फिल्में बन चुकी हैं।

उन्होंने कई उपन्यास लिखें, जिनमें देवदास, परिणीता, शेष प्रश्न, शुभदा, बड़ी दीदी, चरित्रहीन, विप्रदास प्रमुख हैं, उनकी कई उपन्यासों पर आधारित फिल्म भी बनी। उनके उपन्यास चरित्रहीन के नाम पर ही 1974 में फिल्म बनी थी।

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 15 सितंबर 1878 को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के देवनंपुर गांव को हुआ था। हालांकि, उनका अधिकांश जीवन अपने ननिहाल में बिहार के भागलपुर में गुजरा था। उन्होंने अपनी पढ़ाई भी यहीं से की।

रविंद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद चट्टोपाध्याय की लेखनी का शरतचंद्र पर गहरा प्रभाव पड़ा। शरतचंद्र ललित कला के छात्र थे। लेकिन, आर्थिक तंगी के चलते वो अपनी पूरी पढ़ाई नहीं कर सके। उन्हें लिखना बचपन से पसंद था। 18 साल की आयु में एक उपन्यास लिख डाला, लेकिन खुद को ही पसंद नहीं आया तो उसे फाड़ दिया। उन्होंने कई रचनाओं को फाड़ भी डाला था।

इसके बाद शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपनी प्रसिद्ध उपन्यास श्रीकांत लिखी। बताया जाता है कि जब वो बर्मा से कलकत्ता आए तो अपनी कुछ रचनाएं एक मित्र के यहां छोड़ दी। दोस्त ने उन्हें बिना बताए उनकी रचनाओं पर धारावाहिक प्रकाशन शुरू करवा दिया था। जिसका नाम बड़ी दीदी था। फिर क्या था, उस धारावाहिक की चर्चा हर तरफ होने लगी।

उस वक्त लोगों को ऐसा लगने लगा कि रविंद्रनाथ ठाकुर नाम बदलकर ये उपन्यास लिख रहे हैं। यहां तक कि आरोप लगने लगे कि कोई लड़का रविंद्रनाथ ठाकुर की रचना को बदलकर अपने नाम से लिख रहा है।

पांच साल गुजरने के बाद पता चला कि उसका नाम शरत चंद्र चट्टोपाध्याय था। इसके अलावा उन्होंने पंडित मोशाय , बैकुंठेर बिल, दर्पचूर्ण, आरक्षणया, निष्कृति, ब्राह्मण की बेटी उपन्यास लिखी।

16 जनवरी 1948 को शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का निधन हुआ था। उनको ये गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएं हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाओं में आज भी बड़े चाव से पढ़ी जाती हैंष।

--आईएएनएस

एसके/एबीएम

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

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