Advertisment

"तीसरे सप्तक" ने दिलाई थी सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को शोहरत, अपनी कविताओं से सिखाया जीवन जीने का सलीका

"तीसरे सप्तक" ने दिलाई थी सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को शोहरत, अपनी कविताओं से सिखाया जीवन जीने का सलीका

author-image
IANS
New Update

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

Advertisment

नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। अक्सर एक गंध, मेरे पास से गुजर जाती है, अक्सर एक नदी मेरे सामने भर जाती है, अक्सर एक नाव आकर तट से टकराती है, अक्सर एक लीक दूर पार से बुलाती है, ये कविता लिखी थी सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने, जिनकी लेखनी के बिना हिंदी साहित्य की कल्पना करना भी बेईमानी होगी।

उनकी लेखनी का अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि जब तक वह जीवित रहे, तब तक उनकी कलम अपना कमाल दिखाती रही। उन्होंने कविता से लेकर, गीत और नाटक से लेकर आलेख तक को अपनी कलम की स्याही से शब्द उकेरे।

15 सितंबर 1927 को यूपी के बस्ती में जन्में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने एक छोटे से कस्बे से अपने सफर का आगाज किया। मगर उन्हें शोहरत दिलाई तीसरे सप्तक ने। जिन सात कवियों की कविताओं को एक किताब में सम्मिलित किया गया, उनमें से सर्वेश्वर दयाल सक्सेना भी एक थे।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना अपनी एक कविता में प्रेम को बहुत ही खूबसूरती के साथ बयां करते हैं। वह लिखते हैं, तुम्हारे साथ रहकर, अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है कि दिशाएं पास आ गई हैं, हर रास्ता छोटा हो गया है, दुनिया सिमटकर, एक आंगन-सी बन गई है जो खचाखच भरा है, कहीं भी एकांत नहीं, न बाहर, न भीतर।, उन्होंने कविताओं के अलावा नाटक, उपन्यास, यात्रा, बाल-साहित्य के विषयों पर लिखा।

यही नहीं, पत्रकार के रूप में उनको खास पहचान दिनमान में पब्लिश ‘चरचे और चरखे’ ने दिलाई। साल 1983 में कविता संग्रह ‘खूंटियों पर टंगे लोग’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। उन्होंने अपने करियर के दौरान काठ की घंटियां, बांस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएं, कुआनो नदी, जंगल का दर्द, , क्या कह कर पुकारूं, कोई मेरे साथ चले जैसे कविता-संग्रह भी रचे।

बच्चों के लिए भी लिखा। उनकी दो बाल कविता संग्रह बतूता का जूता और महंगू की टाई नाम से प्रकाशित किया गया। 1974 में प्रकाशित हुए उनके लिखे नाटक बकरी का सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया। बताया जाता है कि भारत सरकार ने आपातकाल के दौरान इस पर प्रतिबंध लगा दिया था और मॉरिशस में भी इस पर बैन लगाया गया।

सर्वेश्वर दयाल ने अपनी कविताओं से जीने की उम्मीद जगाई। वह लिखते हैं, तुम्हारे साथ रहकर, अक्सर मुझे महसूस हुआ है कि हर बात का एक मतलब होता है, यहां तक कि घास के हिलने का भी, हवा का खिड़की से आने का और धूप का दीवार पर चढ़कर चले जाने का। कविताओं से जीवन जीने का सलीका सिखाने वाले सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने 24 सितंबर 1983 को दुनिया को अलविदा कह दिया।

--आईएनएस

एफएम/केआर

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Advertisment
Advertisment
Advertisment