नई दिल्ली, 5 सितम्बर (आईएएनएस)। सनातन धर्म में हरतालिका तीज व्रत को सभी व्रतों में महत्वपूर्ण माना जाता है। कुंवारी कन्याओं और विवाहित महिलाओं के लिए हरतालिका तीज का विशेष महत्व होता है। यह व्रत बिना पानी पिए(निर्जला व्रत) रखा जाता है।
हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज व्रत रखा जाता है। इस व्रत को प्रारंभ करने से पहले व्रती सूर्योदय से पहले दही-चूड़ा खाती हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। तो आइए जानते हैं इस व्रत के दौरान दही-चूड़ा खाने की प्रथा और इसके फायदे के बारे में...
हरतालिका तीज व्रत में दही-चूड़ा खाने की परंपरा मुख्य रूप से उत्तर भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में प्रचलित है। चूड़ा, जिसे चिवड़ा भी कहा जाता है। यह एक पारंपरिक भारतीय आहार है।
बता दें कि हरतालिका तीज के दिन दही-चूड़ा खाना एक पुरानी परंपरा है जो पारंपरिक मान्यताओं और सांस्कृतिक प्रथाओं से जुड़ी है। दही-चूड़ा का सेवन करना व्रत के विधि-विधान का हिस्सा होता है और इसके साथ व्रती का पारंपरिक जुड़ाव बनाए रखता है। दही-चूड़ा का सेवन एक संतुलित आहार प्रदान करता है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन और आवश्यक विटामिन्स शामिल होते हैं। यह व्रती को उपवास के दौरान आवश्यक ऊर्जा और पोषण प्रदान करता है।
हरतालिका तीज व्रत एक दिन का निर्जला व्रत होता है। इस व्रत को करने से पहले दही-चूड़ा खाने से शरीर को जरूरी पोषण मिलता है, जिससे व्रती को व्रत के दौरान ताकत मिलती है। दही-चूड़ा का सेवन व्रती के शरीर को व्रत की कठिनाई के लिए तैयार करता है। यह हल्का और पौष्टिक आहार है जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और व्रत के दौरान कमजोरी को दूर करने में मदद करता है।
हरतालिका तीज पर दही-चूड़ा खाने की परंपरा न केवल एक पुरानी सांस्कृतिक परंपरा का पालन है, बल्कि यह महिलाओं के स्वास्थ्य और भक्ति का भी प्रतीक है। इस दिन दही-चूड़ा खाना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो व्रती को व्रत के दौरान आवश्यक ऊर्जा और पोषण प्रदान करता है, साथ ही उनके धार्मिक और आध्यात्मिक संकल्प को भी मजबूत करता है।
-आईएएनएस
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