नई दिल्ली, 31 अगस्त (आईएएनएस)। महाभारत का कर्ण कुछ अलग ही था। सूर्य कवच और कुंडल वाला महा दानवीर जिसने जीवन में बहुत कुछ सहा। जो कुंती के परित्यक्त पुत्र ने सहा उसकी गाथा को शिवाजी सांवत ने एक उपन्यास का आकार दे दिया। मराठी कृति का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ और आज भी साहित्य जगत में मृत्युजंय का खास दखल है।
एक ऐसा उपन्यास है, जिसमें अंगराज कर्ण की जीवन के सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश की गई। सावंत के लिखे पहले ही उपन्यास ने सभी रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया था।
सावंत ने कई उपन्यास लिखे। मगर जो जादू पहली ही बार में ‘मृत्युंजय’ ने चलाया उसने उम्मीदों का पहाड़ कर दिया। 27 साल के उपन्यासकार को रातों-रात बुलंदियों तक पहुंचा दिया। शिवाजी सावंत और ‘मृत्युंजय’ एक-दूसरे के पूरक बन गए। ‘मृत्युंजय’ की लोकप्रियता का पैमाना ऐसा था कि मराठी में लिखे इस उपन्यास को अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, मलयालम समेत कई भाषाओं में अनुवाद किया गया।
31 अगस्त 1940 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में जन्में शिवाजी सावंत ने अपने लेखन की शुरुआत कविता से की थी। लेकिन, उन्हें असल पहचान मिली गद्य लेखन से और वो भी ‘मृत्युंजय’! जिस खूबसूरती के साथ उन्होंने कर्ण की उदारता, दिव्यता भरी छवि को उकेरा वो मिसाल है।
शिवाजी सावंत के उपन्यास के लिए उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया। आकाशवाणी के पुणे स्टेशन से ‘मृत्युंजय’ का रेडियो रूपांतरण भी किया गया। उन्हें ‘मृत्युंजय’ के लिए 1994 में मूर्तिदेवी पुरस्कार दिया गया। वे ये सम्मान पाने वाले पहले मराठी लेखक थे।
शिवाजी सावंत ने अपने करियर के दौरान “मृत्युंजय”,”छावा”, “युगन्धर”, “लढत”, “शलाका साज” और मोरवला जैसे उपन्यास लिखें। 1980 में पब्लिश हुआ उनका उपन्यास छावा छत्रपति संभाजी के जीवन पर आधारित है।
सावंत के बारे में महाराष्ट्र में यह कहा जाने लगा था कि उनकी लिखे को एक बार जरूर पढ़ना चाहिए। चाहे उन्हें किताबें पढ़ना पसंद हो या नहीं। शिवाजी सावंत ने अपने काम से लोगों के दिलों पर राज किया। 18 सितंबर 2002 को गोवा में 62 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
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