बुलंदशहर, 25 जुलाई (आईएएनएस)। ‘जब तक सूरज-चांद रहेगा, तब तक कारगिल युद्ध’ में दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले जवान योगेंद्र यादव की बहादुरी को याद किया जाएगा। आज भी योगेंद्र यादव को याद कर लोग वतनपरस्ती के भाव से ओतप्रोत हो जाते हैं।
अपने सीने पर एक, दो नहीं, बल्कि 17 गोली खाकर भारत माता की अस्मिता को दुश्मनों के प्रहार से बचाने वाले योगेंद्र यादव के शौर्य ही कहानी रोंगटे खड़े कर देनी वाली है।
महज 19 साल की उम्र में दुश्मनों को चारों खाने चित्त करने वाले योगेंद्र यादव का जन्म 1 मई 1980 को हुआ था। इसके बाद, भारत माता की सेवा करने के भाव से वो 1996 में 18 ग्रेनेडियर बटालियन में भर्ती हुए।
1999 में वो शांदी के बंधन में बंधे। शादी के पांच महीने बाद उन्हें सीमा पर कारगिल युद्ध की वजह से जाना पड़ा।
घर में खुशी का माहौल था। लेकिन, उन्होंने इस माहौल से दूरी बनाते हुए पहले देश की सुरक्षा करना ज्यादा उचित समझा।
योगेंद्र यादव की बहादुरी को देखते हुए उन्हें 7 सदस्यीय घातक प्लाटून का कमांडर बनाया गया। उन्हें 3 जुलाई 1999 की रात को टाइगर हिल फतेह करने का टास्क दिया गया था। टाइगर हिल पर खड़ी चढ़ाई थी, बर्फ से ढका और पथरीला पहाड़ था। जान की बाजी लगाते हुए योगेंद्र यादव अपनी टीम का नेतृत्व करते रहे।
उधर, भारतीय जवानों को अपनी ओर आता देख पाकिस्तानी सेना की ओर फायरिंग की जाने लगी। पाकिस्तान की ओर से भारतीय जवानों पर ग्रेनेड और रॉकेट से हमला किया गया।
इस हमले में छह भारतीय जवान शहीद हो गए। योगेंद्र यादव को एक या दो नहीं, बल्कि 17 गोलियां लगी थी। साथियों की शहादत देखते हुए प्लाटून जहां थी, वहीं रूक गई।
इसके बाद, योगेंद्र यादव ने दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए हमला बोल दिया। योगेंद्र यादव अदम्य साहस दिखाते हुए टाइगर हिल की तरफ बढ़ते चले गए। दुश्मनों ने उन पर हमला करना शुरू कर दिया था। दुश्मनों ने अपना हमला जारी रखा। लेकिन, योगेंद्र यादव ने हार नहीं मानी और उन्होंने जवाबी हमला करते हुए आठ पाकिस्तानी आतंकियों को मार गिराया। इसके बाद, टाइगर हिल पर भारत का तिरंगा फहराया।
17 गोली लगने के बाद वो कई महीनों तक जिंदगी और मौत से जंग लड़ते रहे। कई महीनों तक अस्पताल में रहने के बाद उन्हें भारत सरकार की ओर से परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
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